बिलासपुर. जिस प्रकार तूफान जल में तैरती नाव को लहरों में भटकाता है या पानी में डूबा देता है उसी प्रकार इन्द्रियों का आकर्षण बुद्धि रूपी नाव को भगवान की याद से हटाकर भोगों की प्राप्ति का उपाय सोचने में लगाकर भटका देता है या पापों में प्रवृत्त करके
उसका अधोपतन कर डूबो देता है। जो व्यक्ति अपने मन व इन्द्रिय को वश में करके भगवान की याद में रहता है वही संयमी है। ऐसे संयमी को ही गीता में शूरवीर व महाबाहू कहा गया है न कि शरीर से बलशाली व्यक्ति को क्योंकि संयमी व्यक्ति ही अपनी बुद्धि
को परमात्मा में लगा सकता है। मन और बुद्धि को सही तरह से निर्देशित कर स्वयं को सुसंस्कारित बनाना ही योग है और इसी योग से ही व्यक्ति के जीवन में संयम धारण होता है।
योग की नियमितता व स्वअनुशासन से हम आत्मउन्नति कर सकते हैं अर्थात् जीवन की ऊंचाईयों तक पहुंच सकते हैं। उक्त बातें ब्रह्माकुमारीज़ टिकरापारा में मन के विज्ञान का उत्तम शास्त्र गीता विषय पर हर रविवार को आयोजित वेब श्रृंखला़ के आठवें सप्ताह में
साधकों को संबोधित करते हुए सेवाकेन्द्र प्रभारी ब्रम्हकुमारी मंजू दीदी ने कही। आपने कहा कि भगवान ने अर्जुन को सभी बातें स्टेप बाई स्टेप विज्ञान के तर्कसंगत रूप से समझायी और कहा कि हमारे जीवन में अहंकार व इच्छाएं ही अशान्ति का कारण है।
आत्म उन्नति के प्रति उदासीन रहने वाला व्यक्ति वास्तव में अपने ही विनाश के मार्ग पर आगे बढ़ता है। बदलना तो एक दिन पड़ेगा ही लेकिन जो परिवर्तन के बाद या परिवर्तन के साथ बदलने के बजाय परिवर्तन का कारण बनते हैं
वे ही इस दुनिया का नेतृत्व करते हैं। दीदी ने जानकारी दी कि आज के सत्र में द्वितीय अध्याय का समापन हुआ अगले रविवार के सत्र में तृतीय अध्याय अर्थात् कर्मयोग का वर्णन किया जायेगा।