बिलासपुर. जब तक भगवान गणेश की पूजा न हो तब तक किसी भी देवी-देवता की पूजा नहीं की जाती है। चाहे कोई अनुष्ठान हो या कोई व्रत-त्योहार सबसे पहले गणेश की पूजा होती है। एेसे में बिलासपुर शहर में सभी देवी-देवताओं के मंदिर के साथ एक प्राचीन गणेश मंदिर है। जिसे समुख गणेश के नाम से जाना जाता है।
इसकी स्थापना तमिल समाज ने की थी। रेलवे कंस्ट्रक्शन कॉलोनी में सुमुख गणेश के मंदिर का निर्माण १९६७ में तीन हजार वर्गफीट में दक्षिण भारतीय शैली से गणेश मंदिर का निर्माण कराया गया। इसके लिए विशेष रूप से तमिलनाडु से कारीगरों को बुलाया गया था। इसके अलावा तमिलनाडु के तंजाउर जिले से ही काले पत्थर की साढ़े तीन फीट की गणेश प्रतिमा लाकर स्थापित की गई। जिसे सुमुख गणेश के नाम से जाना जाता है।
० तिल के तेल से होता है अभिषेक
वैसे तो न्याय के देवता यानी कि शनि देव को ही तिल का तेल अर्पित किया जाता है। लेकिन दक्षिण भारतीय पंरपरा में तिल के तेल का विशेष महत्व होता है। मंदिर समिति के सदस्यों के मुताबिक दक्षिण भारत में न तो प्लास्टर ऑफ पेरिस की मूर्ति होती है और न ही मिट्टी की। सिर्फ धातु या ग्रेनाइट पत्थर से बने मूर्ति का पूजन होता है। इसलिए इसका अभिषेक भी वे तेल से करते है और खास तौर पर तिल का तेल करते है इस्तेमाल।
० शहर का पहला गणेश मंदिर
यह शहर का पहला गणेश मंदिर है। रेलवे क्षेत्र में इसकी स्थापना की गई है। इसके बाद तिलक नगर में गणेश मंदिर बनाया गया। इस मंदिर में आने वाले प्रत्येक भक्त प्रथम पूज्य का आशीर्वाद प्राप्त करते है।
० संकष्टी चतुर्थी व विनायक चतुर्थी में होती है विशेष पूजा
इस गणेश मंदिर में भगवान की पूजा तो प्रतिदिन होती है लेकिन संकष्टी चतुर्थी व विनायक चतुर्थी की तिथि पर भगवान को पूजन-शृंगार किया जाता है। खास तौर पर इस दिन यहां महाआरती होती है। गणेश चतुर्थी पर भी इस मंदिर में आयोजन होते है।
Behad ki labhdayak jankari
ॐ गं गणपतये नम:
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