घोंघा बाबा मंदिर परिसर स्थित श्री खाटू श्याम मंदिर में परिवर्तिनी एकादसी बड़े ही भक्ति और भाव से मनाई गई। सर्वप्रथम बाबा श्याम जी की मंगला आरती हुई फिर शालिग्राम जी की तुलसी सेवा एवं पूजन हुआ।
अपने श्रृंगार के लिए प्रसिद्ध खाटू श्याम जी मे इस एकादसी दिल्ली के फुलां से दरबार एवं श्रृंगार किया गया।
51 माला जिसमे तुलसी, रजनीगंधा, देसी गुलाब, गेंदा, ऑर्चित आदि के फूलों से बने मालाओं से प्रभु श्याम जी का नयनाभिराम श्रृंगार किया गया।
प्रातः 9 बजे निकले निशान यात्रा में शासन के निर्देश अनुसार कोविड नियमो के साथ बाबा श्याम के भक्त जयकारा लगाते हुए दरबार मे ध्वजा अर्पित की। रात्रि कालीन भजन एवं महाआरती के पश्चात प्रसाद वितरण हुआ।
महत्व परिवर्तिनी एकादशी
परिवर्तिनी एकादसी को वामन या जलझूलनी एकादसी भी कहते हैं। श्रीकृष्ण ने अर्जुन को एकादशी के व्रत के महामात्य के बारे में बताते हुए, व्रत की कथा सुनाई थी और साथ ही एकादशी का व्रत रखने को भी कहा था। कथा के अनुसार त्रेतायुग में बलि नाम का असुर था। असुर होने के बावजूद वे धर्म-कर्म में लीन रहता था और लोगों की काफी मदद और सेवा करता था। इस करके वो अपने तप और भक्ति भाव से बलि देवराज इंद्र के बराबर आ गया। जिसे देखकर देवराज इंद्र और अन्य देवता भी घबरा गए। उन्हें लगने लगा कि बलि कहीं स्वर्ग का राजा न बन जाए।
ऐसा होने से रोकने के लिए इंद्र ने भगवान विष्णु की शरण ली और अपनी चिंता उनके सम्मुख रखी। इतना ही नहीं, इंद्र ने भगवान विष्णु से रक्षा की प्रार्थना की। इंद्र की इस समस्या के समाधान के लिए भगवान विष्णु ने वामन रूप धारण किया और राजा बलि के सम्मुख प्रकट हो गए। वामन रूप में भगवान विष्णु ने विराट रूप धारण कर एक पांव से पृथ्वी, दूसरे पांव की एड़ी से स्वर्ग और पंजे से ब्रह्मलोक को नाप लिया। अब भगवान विष्णु के पास तीसरे पांव के लिए कुछ बचा ही नहीं। तब राजा बलि ने तीसरा पैर रखने के लिए अपना सिर आगे कर दिया। भगवान वामन ने तीसरा पैर उनके सिर पर रख दिया। भगवान राजा बलि की इस भावना से बेहद प्रसन्न हुए और उन्हें पाताल लोक का राजा बना दिया।