पुत्रदा एकादशी के व्रत को करने से श्रीहरि प्रदान करते है संतान सुख, जाने
हिन्दू धर्म में व्रतों में सबसे महत्वपूर्ण एकादशी के व्रत को माना जाता है। पौष मास के शुक्ल पक्ष को पड़ने वाली एकादशी को पौष पुत्रदा एकादशी कहते है। इस दिन भगवान विष्णु की विधि-विधान से पूजा की जाती है।
मान्यता है कि पुत्रदा एकादशी का व्रत रखने वालों की भगवान विष्णु सभी मनोकामनाएं पूरी करते है और संतान सुख भी प्रदान करने है। इसलिए इस व्रत को सबसे उत्तम माना जाता है। इस बार पुत्रदा एकादशी का व्रत 24 जनवरी को होगा।
ज्योतिषाचार्यों के मुताबिक संतान कामना के लिए इस दिन भगवान कृष्ण के बाल स्वरूप की पूजा की जाती है। इस दिन सुबह पति-पत्नी को साथ में भगवान कृष्ण की पूजा करनी चाहिए।
उन्हें पीले फल, तुलसी, पीले पुष्प और पंचामृत आदि अर्पित करना चाहिए। इसके बाद संतान गोपाल मंत्र का जाप करना चाहिए। मंत्र जाप के बाद पति-पत्नी को साथ में प्रसाद ग्रहण करना चाहिए। एकादशी के दिन भगवान श्रीकृष्ण को पंचामृत का भोग लगाना शुभ माना जाता है।
यह है व्रत की कथा
धार्मिक कथाओं के अनुसार भद्रावती राज्य में सुकेतुमान नाम का राजा रहता था। उसकी पत्नी शैव्या थी। राजा के पास सब कुछ था। सिर्फ संतान नहीं थी। ऐसे में राजा और रानी उदास और चिंतित रहा करते थे। राजा के मन में पिंडदान की चिंता सताने लगी।
ऐसे में एक दिन राजा ने दुखी होकर अपने प्राण लेने का मन बना लिया। हालांकि पाप के डर से उसने यह विचार त्याग दिया। राजा का एक दिन मन राजपाठ में नहीं लग रहा था। जिसके कारण वह जंगल की ओर चला गया। राजा को जंगल में पक्षी और जानवर दिखाई दिए। राजा के मन में बुरे विचार आने लगे।
इसके बाद राजा दुखी होकर एक तालाब किनारे बैठ गए। तालाब के किनारे ऋषि मुनि राजा को देखकर प्रसन्न हुए। उन्होंने कहा कि राजन आप अपनी इच्छा बताए। राजा ने अपने मन की चिंता मुनियों को बताई। राजा की चिंता सुनकर मुनि ने कहा कि एक पुत्रदा एकादशी व्रत है।
मुनियों ने राजा को पुत्रदा एकादशी का व्रत रखने के लिए कहा। राजा उसी दिन से इस व्रत को रखा और द्वादशी को इसका विधि-विधान से पारण किया। इसके फल स्वरूप रानी ने कुछ दिनों बाद गर्भ धारण किया और नौ माह बाद राजा को पुत्र की प्राप्ति हुई।