सनातन धर्म में एकादशी की तिथि महत्वपूर्ण मानी जाती है। प्रत्येक माह में दो एकादशी की तिथि आती है। जब विधि-विधान से व्रत करते हुए श्रद्धालु श्री हरि विष्णु की आराधना करते है। अजा एकादशी का व्रत भी बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। अजा एकादशी भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी कहलाती है। इस साल अजा एकादशी का व्रत 15 अगस्त को रखा जाएगा। एकादशी को श्रेष्ठ व्रत माना जाता है।
इस दिन जगत के पालन हार श्रीहरि विष्णु की पूजा-अर्चना श्रद्धालु करते है। भगवान विष्णु को यह तिथि प्रिय है। इस दिन व्रत और सच्चे मन से विष्णु की आराधना करने पर सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। इस लेख के माध्यम से हम अजा एकादशी के महत्व, पूजन विधि व कथा को बताएंगे।
अजा एकादशी का महत्व अजा एकादशी का व्रत पूरी श्रद्धा भक्ति से करने पर पुण्य फल की प्राप्ति होती है। साथ ही अश्वमेध यज्ञ के समान फल प्राप्त होता है। इस व्रत को नियमपूर्वक करने वाले को मोक्ष की प्राप्ति होती है। ऐसी मान्यता है कि इस व्रत को करने से समस्त पापों का नाश होता है। आत्मा मृत्यु के बाद बैकुंठ धाम को प्रस्थान करती है।
व्रत रखने की विधि जिन लोगों को व्रत रखना हो वे एकादशी से एक दिन पहले दोपहर के समय ही भोजन करे। रात्रि भोजन नहीं करना चाहिए। ताकि पेट में खाने का अंश न रहे। एकादशी का व्रत बहुत कठिन होता है। एकादशी पर व्रत करने वालों के लिए किसी भी तरह का अन्न ग्रहण करना वर्जित माना गया है। एकादशी के दिन पूरे समय उपवास किया जाता है। दूसरे दिन सुबह को व्रत का पारण किया जाता है। लोग अपनी क्षमता के मुताबिक व्रत का पालन करते है।
पूजा की विधि सुबह उठकर स्नानादि करने के बाद भगवान के समक्ष व्रत का संकल्प ले। पूजा घर में या पूर्व दिशा में किसी स्वच्छ जगह पर एक चैकी पर भगवान का आसन लगाएं और उस पर एक गेहूं की ढेरी रखकर कलश में जल भरकर उसकी स्थापना करे। कलश पर पान के पत्ते लगाकर नारियल रखे और भगवान विष्णु की कोई तस्वीर रखे। उसके बाद दीपक जलाएं और फल-फूल, नैवेद्य से विष्णु जी की पूजा करे। दूसरे दिन सुबह को स्नानादि करने के बाद विष्णु जी की पूजा करके किसी ब्राम्हण को भोजन कराए अथवा भोजन की समस्त सामग्री सूखे ही दान में दे। स्थापित किए गए कलश के जल को अपने घर में छिड़क दे।
अजा एकादशी व्रत की कथा हरिचंद्र नाम का एक राजा था। वह राजा अपने राज्य का पालन बहुत अच्छे से कर रहा था। जीवन व्यतीत करते हुए उसके पिछले जन्मों के पाप उसके सामने आ गए। जिसकी वजह से उसे लगातार दुखों का सामना करना पड़ा। दुखों की गाज सिर पर ऐसी गिरी कि राजा को अपना राज्य छोड़कर जंगलों में रहने को मजबूर होना पड़ा। वह बहुत अधिक दरिद्रता झेल रहा था। वह लकड़ियां काटने का काम करके जो कमाता उससे ही दो वक्त की रोटी खा पाता था। एक दिन अचानक से ऋषि गौतम जंगल में मिले। ऋषि को देख राजा ने प्रणाम किया और कहा हे प्रभु मेरी अर्ज सुनिए मैं बहुत दुखों का मारा हूं। मेरे जीवन में अचानक से एक साथ कई सारे दुख आ गए है।
कृपा करके मेरे उद्धार का कोई उपाय बताएं। ऋषि गौतम ने राजा को कहा हे राजन तुम चिंता मत करो। तुम्हारी परेशानियों का समय अब खत्म होने वाला है। भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी यानी अजा एकादशी का व्रत करो। उससे तुम्हारे सभी पापों का नाश होगा। भगवान विष्णु की कृपा से तुम्हारे सभी दुख दूर होंगे।
राजा ने ऋषि के कहने के मुताबिक अजा एकादशी का व्रत किया। अजा एकादशी व्रत के प्रभाव से राजा अपने राज्य में दोबारा लौट आया और मृत्यु तक वहीं राज्य किया। अंत में वह भगवान विष्णु के धाम गया। अजा एकादशी की कथा इतनी पवित्र है कि इसे पढ़ने-सुनने मात्र से अश्वमेध यज्ञ के फल की प्राप्ति होती है।