हिन्दू धर्म में सभी देवी-देवताओं का महत्व माना गया है। ब्रम्हा, विष्णु व महेश को त्रिदेव कहा जाता है। तीनों ही महत्वपूर्ण माने जाते है। देवी-देवताओं के वाहनों के विषय में हम लेख के माध्यम से बताते रहे है। भगवान श्री हरि विष्णु का वाहन गरुण है यह बात तो सब जानते है। लेकिन गरुण कैसे बना भगवान विष्णु का वाहन इस विषय में लोग नहीं जानते है। इस लेख के माध्यम से हम पूरी जानकारी देंगे।

ऐसे बना गरुण भगवान विष्णु का वाहन
विष्णु पुराण के मुताबिक जब गरुड़ अमृत लेकर आकाश में उड़े जा रहे थे तब उन्हें भगवान विष्णु का साक्षात्कार हुआ। भगवान विष्णु ने उन्हें वर देने की इच्छा प्रकट की। जिसके बाद गरुड़ ने वर मांगा कि भगवान विष्णुवह सदैव उनकी ध्वजा में उपस्थित रह सके। साथ ही बिना अमृत को पिए ही अजर-अमर हो जाए। गरुड़ की बात सुनकर भगवान ने उन्हें वर दे दिया। तब गरुड़ ने भगवान विष्णु से कहा मैं भी आपकों वर देना चाहता हूं। इस पर भगवान ने उसे अपना वाहन होने का वर मांगा। कहते है कि तब से गरुड़ भगवान विष्णु के वाहन हो गए।

परमात्मा को वहन करने वाला होता है वाहन
शास्त्रों में वाहन का अर्थ ढोने वाला बताया गया है तो वहीं वेदों को परमात्मा का वहन करने वाला कहा गया है। इसलिए तीनों वेद केवाहन गरुड़ है। इसके अलावा भागवत पुराण में कहा गया है कि सामवेद के वृहद और अथांतर नामक भाग गरुड़ के पंख है और उड़ते समय उनसे साम ध्वनि निकलती है इसलिए गरुड़ को सर्ववेदमय विग्रह कहा जाता है। साथ ही गरुड़ को वाहन कहने का अभिप्राय यह भी माना जाता है कि भगवान विष्णु का विमान गरुड़ के आकार का था। विमान पर लहराती ध्वजा पर तो गरुड़ का अंकित होना माना ही गया है।
गरुड़ की उत्पत्ति की पौराणिक कथा
गरुड़ की उत्पत्ति के संबंध में पुराणों में वर्णित है। जिसके मुताबिक गरुड़ कश्यप ऋषि और उनकी दूसरी पत्नी विनता की संतान है। दक्ष प्रजापति और कद्रू आौर विनता नाम दो कन्याएं थी। उन दोनों का विवाह कश्यप ऋषि के साथ हुआ। कश्यप ऋषि से कद्रू ने एक हजार नाग पुत्र और विनता ने केवल दो तेजस्वी पुत्र वरदान के रूप में मांगे वरदान के परिणामस्वरूप कद्रू ने एक हजार अंडे और विनता ने दो अंडे प्रसव किए। कद्रू के अंडों के फूटने पर उसे एक हजार नाग पुत्र मिल गए। परंतु विनता के अंडे उस समय तक नहीं फूटे। उतावली होकर विनता ने एक अंडे को फोड़ डाला। उसमें से निकलने वाले बच्चे का उपरी अंग पूर्ण हो चुका था। किंतु नीचे के अंग नहीं बन पाए थे। उस बच्चे ने क्रोधित होकर अपनी माता को श्राप दे दिया कि माता तुमने कच्चे अंउे को तोड़ दिया है इसलिए तुझे 500 वर्षो तक अपनी सौत की दासी बनकर रहना होगा। ध्यान रहे दूसरे अंडे को अपने से फूटने देना। उस अंडे से अत्यंत तेजस्वी बालक होगा और वहीं तुझे इस श्राप से मुक्ति दिलाएगा। इतना कहकर अरुण नामक वह बालक आकाश में उड़ गया और सूर्य के रथ का सरथी बन गया। समय आने पर विनता के दूसरे अंडे से महातेजस्वी गरुड़ की उत्पत्ति हुई।
समय-समय पर की भगवान विष्णु की सहायता
त्रेतायुग में जब भगवान विष्णु श्री राम के रूप में अवतरित हुए थे तब मेघनाथ ने श्री राम व लक्ष्मण को नागपास से बांध दिया था। दोनों ही भाई मुर्झित होकर गिर गए थे। तब उनको बचाना बहुत मुश्किल था लेकिन तब हनुमान जी ने भगवान व उनके अनुज को बचाने के लिए गरुड़ की ही सहायता ली थी। गरुड़ अपने स्वामी भगवान विष्णु की रक्षा के लिए पहुंचे और नाग पास से मुक्त कराते हुए जीवन प्रदान किया।
गरुड़ के नाम का ध्वज, घंटी व पुराण
गरुड़ के नाम से एक पुराण, घंटी, ध्वज व एक व्रत भी है। महाभारत में गरुड़ ध्वज था। घर में रखे मंदिर में गरुड़ घंटी और मंदिर के शिखर पर गरुड़ ध्वज होता है। गरुड़ पुराण में मृत्यु के पहले और बाद की स्थिति के बारे में बताया गया है।
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ऐसी सुंदर और सटीक जानकारी के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद
जय श्री हरि